ज्योतिष और जीवन

 

ज्योतिष का जीवन में अत्यधिक महत्व

      

       सनातन काल से ही जीवन में ज्योतिष का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जन्म से लेकर जीवन की अन्तिम यात्रा तक सभी को प्रत्येक कदम पर ज्योतिष का सहारा लेना पड़ता है । बालक का जन्म होते  ही माता-पिता उसकी जन्म-कुंडली बनवाते हैं जो उस नव-जातक के जीवन का दर्पण होती है। हालांकि  ये दर्पण कोई साधारण दर्पण की भांति नहीं बल्कि अलौकिक होता है। इस दर्पण का अवलोकन करना हर किसी के वश की बात नहीं है केवल ज्योतिष के विषय में पूरी तरह से जानकारी प्राप्त पण्डित ही अवलोकन कर सकता है। जो जन्म-कुंडली देखकर जातक के भूत, भविष्य और वर्तमान काल में घटित और घटने वाली घटनाओं के बारे में अवगत करवाता है।

         जन्म-कुंडली के अवलोकन में प्रत्येक भाव (घर) तथा प्रत्येक ग्रह का महत्व है और उसी महत्व को समझते हुए ज्योतिष-पण्डितों द्वारा कुंडली के भावों में स्थित ग्रहों की स्थिति का समग्र रूप से आंकलन कर भविष्यवाणी की जाती है। जन्म-कुंडली का जातक के मात्र वर्तमान जन्म से संबंध नहीं होता है बल्कि जन्म-जन्मांतर का (अगले एवं पिछले जन्म का भी संबंध होता है।) जिससे जातक के किसी भी जीवन की घटनाएं देख सकते हैं। अपितु जन्म-कुंडली जातक के जन्म-जन्मांतर का दर्पण है और वो कोई साधारण दर्पण की भांति नहीं होता है जिसे कोई भी देख सके (जो कि पहले बतलाया जा चुका है) बल्कि एक महासागर है जिसमें जातक के जीवन की घटनाओं के बारे में पता लगाने के लिए ज्योतिष-पंडितों को उस महासागर में गहराई तक गोता लगाना पड़ता है।

       चूंकि ये एक लंबी प्रक्रिया है इसलिए अभी इस विषय पर विराम लगाते हैं इसपर फिर कभी चर्चा करेंगे। फिलहाल इसी विषय से सम्बंधित दूसरे प्रकरण पर चर्चा करते हैं जिसका नाम है प्रश्न-कुंडली।

क्या है प्रश्न-कुंडली?

       प्रश्न-कुंडली जन्म-कुंडली का ही एक हिस्सा है। चूंकि पूर्ण रूप से इसे हम जन्म-कुंडली का हिस्सा तो नहीं मान सकते क्योंकि जन्म-कुंडली जातक के जन्म समय, जन्म स्थान तथा जन्म स्थान के अक्षांश-रेखांश पर आधारित होती है जबकि प्रश्न-कुंडली में इन सबसे कोई लेना देना नहीं होता है। ये कुंडली किसी जिज्ञासु के प्रश्न पूछे जाने के समय पर आधारित होती है। चूंकि ये भी भविष्य के प्रश्न से जुड़ी है इसलिए हम इसे आंशिक रूप से जन्म-कुंडली का हिस्सा मानते हैं। खैर हिस्से से आप लोग समझ ही गए होंगे कि इसमें उतनी लंबी प्रक्रिया नहीं है जितनी जन्म-कुंडली में होती है। हालांकि इसमें ज्योतिष के विषय में ज्ञान होना तो अनिवार्य है ही मगर इसमें इतनी गहराई नहीं होती है। ये समझो कि जैसे जन्म-कुंडली एक महासागर है तो प्रश्न-कुंडली एक सरोवर है, या यूं समझिए कि ये एक पोखरा है जिसकी गहराई ज्यादा नहीं होती है। अतः प्रश्न-कुंडली का अध्ययन करना आसान है।

प्रश्न-कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाता है?

यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं कि प्रश्न-कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाता है, तो आप हमें कमेन्ट कीजिए, तुरंत उत्तर दिया जायेगा।